क्या उस हराम-ख़ोर को जुज़ मुर्दा है नसीब By Sher << मैं हूँ इक और ही लैला का ... कुछ अजब तासीर थी उस बुत क... >> क्या उस हराम-ख़ोर को जुज़ मुर्दा है नसीब आया न मुँह में गोर के लुक़्मा हलाल का Share on: