क्या वो भी चाव-चूज़ के दिन थे कि जिन दिनों By Sher << यूँ तो आती हैं सैकड़ों बा... ये तो माना कि तिरे बस में... >> क्या वो भी चाव-चूज़ के दिन थे कि जिन दिनों गर्दन में मेरी यार का दस्त-ए-ख़मीदा था Share on: