लब-ए-जाँ-बख़्श तक जा कर रहे महरूम बोसा से By बोसा, Sher << कितना दुश्वार लग रहा था स... एक तरफ़ तिरे हुस्न की हैर... >> लब-ए-जाँ-बख़्श तक जा कर रहे महरूम बोसा से हम इस पानी के प्यासे थे जो तड़पाता है साहिल पर Share on: