शाम होते ही बुझ गया 'आजिज़' By Sher << अब्र बरसे तो इनायत उस की चला जाता हूँ हँसता खेलता ... >> शाम होते ही बुझ गया 'आजिज़' एक मुफ़्लिस का ख़्वाब था न रहा Share on: