लफ़्ज़ को इल्हाम मअ'नी को शरर समझा था मैं By Sher << इक ठेस भी हल्की सी पत्थर ... जिन के होंटों पे हँसी पाँ... >> लफ़्ज़ को इल्हाम मअ'नी को शरर समझा था मैं दर-हक़ीक़त ऐब था जिस को हुनर समझा था मैं Share on: