लिखा था एक तख़्ती पर कोई भी फूल मत तोड़े मगर आँधी तो अन-पढ़ थी By Sher << शहर जब ख़ुद-कफ़ील है साहब ज़िंदगी कहते हैं किस को म... >> लिखा था एक तख़्ती पर कोई भी फूल मत तोड़े मगर आँधी तो अन-पढ़ थी सो जब वो बाग़ से गुज़री कोई उखड़ा कोई टूटा ख़िज़ाँ के आख़िरी दिन थे Share on: