हाए फिर फ़स्ल-ए-बहार आई 'ख़िज़ाँ' By Sher << जाने क्यूँ लोग मिरा नाम प... अब मुझे बोलना नहीं पड़ता >> हाए फिर फ़स्ल-ए-बहार आई 'ख़िज़ाँ' कभी मरना कभी जीना है मुहाल Share on: