मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ By Sher << तलाश-ए-मअ'नी-ए-मक़्सू... झाँकते रात के गरेबाँ से >> मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ यहाँ हमदर्द हैं दो-चार मेरे Share on: