मैं और सद-हज़ार नवा-ए-जिगर-ख़राश By Sher << ज़रा सा ग़म हुआ और रो दिए... ज़ुल्फ़ का हाल तक कभी न स... >> मैं और सद-हज़ार नवा-ए-जिगर-ख़राश तू और एक वो ना-शुनीदन कि क्या कहूँ Share on: