मैं चोट कर तो रहा हूँ हवा के माथे पर By Sher << मैं सोचता हूँ बहुत ज़िंदग... कभी कभी तो ये वहशत भी हम ... >> मैं चोट कर तो रहा हूँ हवा के माथे पर मज़ा तो जब था कि कोई निशान भी पड़ता Share on: