मैं हैरत ओ हसरत का मारा ख़ामोश खड़ा हूँ साहिल पर By Sher << मैं 'शाद' तन्हा इ... लहद में क्यूँ न जाऊँ मुँह... >> मैं हैरत ओ हसरत का मारा ख़ामोश खड़ा हूँ साहिल पर दरिया-ए-मोहब्बत कहता है आ कुछ भी नहीं पायाब हैं हम Share on: