मैं हूँ मगर आज उस गली के सभी दरीचे खुले हुए हैं By Sher << दिल में न हो जुरअत तो मोह... दुश्मन गए तो कशमकश-ए-दोस्... >> मैं हूँ मगर आज उस गली के सभी दरीचे खुले हुए हैं कि अब मैं आज़ाद हो चुका हूँ तमाम आँखों के दाएरों से Share on: