मैं ज़हर पीता रहा ज़िंदगी के हाथों से By Sher << लोग कहते हैं कि साया तिरे... ये शफ़क़ चाँद सितारे नहीं... >> मैं ज़हर पीता रहा ज़िंदगी के हाथों से ये और बात है मेरा बदन हरा न हुआ Share on: