मैं कहाँ तक दिल-ए-सादा को भटकने से बचाऊँ By Sher << ग़र्क़ कर दे तुझ को ज़ाहि... मैं जब 'क़तील' अप... >> मैं कहाँ तक दिल-ए-सादा को भटकने से बचाऊँ आँख जब उठ्ठे गुनहगार बना दे मुझ को Share on: