मैं निगाह-ए-पाक से देखे था तिरे हुस्न-ए-पाक को इस पे भी By Sher << मैं सवा शेर के कुछ और समझ... मैं क्यूँकर न रख्खूँ अज़ी... >> मैं निगाह-ए-पाक से देखे था तिरे हुस्न-ए-पाक को इस पे भी मिरे जी में ख़्वाहिश-ए-वस्ल थी तिरे दिल में बोस-ओ-कनार था Share on: