मैं पर-शिकस्ता न था बादलों के बीच मगर By Sher << सदा चमन से जो आती है रोज़... इतनी कुदूरत अश्क में हैरा... >> मैं पर-शिकस्ता न था बादलों के बीच मगर मिरी उड़ान का ज़ंजीर से लिपट जाना Share on: