मलते हैं ख़ूब-रू तिरे ख़ेमे से छातियाँ By Sher << ज़िंदगी आ तुझे क़ातिल के ... मंदिर गए मस्जिद गए पीरों ... >> मलते हैं ख़ूब-रू तिरे ख़ेमे से छातियाँ अंगिया की डोरियाँ हैं मुक़र्रर क़नात में Share on: