मौक़ूफ़ है क्यूँ हश्र पे इंसाफ़ हमारा By Sher << इक रात है फैली हुई सदियों... काश होता मज़ा कहानी में >> मौक़ूफ़ है क्यूँ हश्र पे इंसाफ़ हमारा क़िस्सा जो यहाँ का है तो फिर तय भी यहीं हो Share on: