मेरे हवास-ए-ख़मसा उसे देख उड़ गए By Sher << गो अब हज़ार शक्ल से जल्वा... तख़्ता-ए-दार पे चाहे जिसे... >> मेरे हवास-ए-ख़मसा उसे देख उड़ गए क्यूँ कर ठहर सकें ये कबूतर थे पर गिरे Share on: