मिज़ाज-ए-दर्द को सब लफ़्ज़ भी क़ुबूल न थे By Sher << दुश्मन के घर से चल के दिख... देख कर ग़ैर को शोख़ी देखो >> मिज़ाज-ए-दर्द को सब लफ़्ज़ भी क़ुबूल न थे किसी किसी को तिरे ग़म का इस्तिआरा किया Share on: