मिरे बग़ैर न इक-दम उसे क़रार आता By Sher << पाँव के हाथ से गर्दिश ही ... ताज़गी है सुख़न-ए-कुहना मे... >> मिरे बग़ैर न इक-दम उसे क़रार आता ज़रा भी ज़ब्त जो मुझ बे-क़रार में होता Share on: