मिरे दिल में है कि पूछूँ कभी मुर्शिद-ए-मुग़ाँ से By Sher << बरहमी हुस्न को कुछ और जिल... मैं सुनाता रहा दुखड़े ... >> मिरे दिल में है कि पूछूँ कभी मुर्शिद-ए-मुग़ाँ से कि मिला जमाल-ए-साक़ी को ये तनतना कहाँ से Share on: