है 'फ़रीदी' अजब रंग-ए-बज़्म-ए-जहाँ मिट रहा है यहाँ फ़र्क़-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ By Sher << इस में नहीं है दख़्ल कोई ... जब भी मिलते हैं तो जीने क... >> है 'फ़रीदी' अजब रंग-ए-बज़्म-ए-जहाँ मिट रहा है यहाँ फ़र्क़-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ नूर की भीक तारों से लेने लगा आफ़्ताब अपनी इक इक किरन बेच कर Share on: