लफ़्ज़ों को ए'तिमाद का लहजा भी चाहिए By Sher << बेहतर तो है यही कि न दुनि... हँस के मिलता है मगर काफ़ी... >> लफ़्ज़ों को ए'तिमाद का लहजा भी चाहिए ज़िक्र-ए-सहर बजा है यक़ीन-ए-सहर भी है Share on: