यूँ देखते रहना उसे अच्छा नहीं 'मोहसिन' By Sher << हम ग़म-ज़दा हैं लाएँ कहाँ... वक़्त का पत्थर भारी होता ... >> यूँ देखते रहना उसे अच्छा नहीं 'मोहसिन' वो काँच का पैकर है तो पत्थर तिरी आँखें Share on: