मुझ को मंज़ूर नहीं इश्क़ को रुस्वा करना By Sher << ये ग़म नहीं कि मुझ को जाग... जो अपनी नींद की पूँजी भी ... >> मुझ को मंज़ूर नहीं इश्क़ को रुस्वा करना है जिगर चाक मगर लब पे हँसी है ऐ दोस्त Share on: