रूह देती रही तर्ग़ीब-ए-तअ'ल्ली बरसों By Sher << ज़िंदगी फैली हुई थी शाम-ए... तड़प रहा है दिल इक नावक-ए... >> रूह देती रही तर्ग़ीब-ए-तअ'ल्ली बरसों हम मगर तेरी गली छोड़ के ऊपर न गए Share on: