न थी ज़मीन में वुसअत मिरी नज़र जैसी By Sher << हुस्न-ए-बहार मुझ को मुकम्... बे-तअल्लुक़ तिरे आगे से ग... >> न थी ज़मीन में वुसअत मिरी नज़र जैसी बदन थका भी नहीं और सफ़र तमाम हुआ Share on: