नज़्र-ए-ग़म शायद हर अश्क-ए-ख़ूँ-चकाँ करना पड़े By Sher << अक्स से अपने अगर राह नहीं... जाने को जाए फ़स्ल-ए-गुल आ... >> नज़्र-ए-ग़म शायद हर अश्क-ए-ख़ूँ-चकाँ करना पड़े क्या ख़बर कितनी बहारों को ख़िज़ाँ करना पड़े Share on: