ना-मुस्तजाब इतनी दुआएँ हुईं कि फिर By Sher << हिज्र के तपते मौसम में भी... मय-कशों में न कोई मुझ सा ... >> ना-मुस्तजाब इतनी दुआएँ हुईं कि फिर मेरा यक़ीं भी उठ गया रस्म-ए-दुआ के साथ Share on: