नाव काग़ज़ की तन-ए-ख़ाकी-ए-इंसाँ समझो By Sher << ख़ुश्बू सी कोई आए तो लगता... आओ इक सज्दा करूँ आलम-ए-बद... >> नाव काग़ज़ की तन-ए-ख़ाकी-ए-इंसाँ समझो ग़र्क़ हो जाएँगी छींटा जो पड़ा पानी का Share on: