तोड़े हैं बहुत शीशा-ए-दिल जिस ने 'नज़ीर' आह By Sher << पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ु... तिरी ज़ुल्फ़ों में दिल उल... >> तोड़े हैं बहुत शीशा-ए-दिल जिस ने 'नज़ीर' आह फिर चर्ख़ वही गुम्बद-ए-मीनाई है कम-बख़्त Share on: