पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो By Sher << गिरनी थी हम पे बर्क़-ए-तज... किसी ने न देखा तिरे हुस्न... >> पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ even tho no longer close we are as used to be come even if it's purely for sake of formality Share on: