पर कतर पाई जब न ख़्वाबों के By ख़्वाब, Sher << क़ाएम है अब भी मेरी वफ़ाओ... न हों ख़्वाहिशें न गिला क... >> पर कतर पाई जब न ख़्वाबों के बंद ही कर दीं खिड़कियाँ मैं ने Share on: