परसों मैं बाज़ार गया था दर्पन लेने की ख़ातिर By Sher << प्यास को प्यार करना था के... नए सफ़र का हर इक मोड़ भी ... >> परसों मैं बाज़ार गया था दर्पन लेने की ख़ातिर क्या बोलूँ दूकान पे ही मैं शर्म के मारे गड़ बैठा Share on: