परिंद क्यूँ मिरी शाख़ों से ख़ौफ़ खाते हैं By Sher << निगाह-ओ-दिल से गुज़री दास... मेरी क़िस्मत की कजी का अक... >> परिंद क्यूँ मिरी शाख़ों से ख़ौफ़ खाते हैं कि इक दरख़्त हूँ और साया-दार मैं भी हूँ Share on: