परकार की रविश फिरे हम जितने चल सके By Sher << ऐसा न हो ये रात कोई हश्र ... फ़लक से मुझ को शिकवा है ज... >> परकार की रविश फिरे हम जितने चल सके इस गर्दिश-ए-फ़लक से न बाहर निकल सके Share on: