परवानों का तो हश्र जो होना था हो चुका By Sher << शब को मिरी चश्म-ए-हसरत का... निगाह-ए-नाज़ से साक़ी का ... >> परवानों का तो हश्र जो होना था हो चुका गुज़री है रात शम्अ पे क्या देखते चलें Share on: