रात के लम्हात ख़ूनी दास्ताँ लिखते रहे By Sher << शफ़क़ सी फिर कोई उतरी है ... क़ानून जैसे खो चुका सदियो... >> रात के लम्हात ख़ूनी दास्ताँ लिखते रहे सुब्ह के अख़बार में हालात बेहतर हो गए Share on: