रह-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा भी कूचा-ओ-बाज़ार हो जैसे By Sher << 'सहर' अब होगा मेर... फिर खुले इब्तिदा-ए-इश्क़ ... >> रह-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा भी कूचा-ओ-बाज़ार हो जैसे कभी जो हो नहीं पाता वो सौदा याद आता है Share on: