रही हमेशा तरक़्क़ी मिरी असीरी को By Sher << रहने पे जो मस्जिद के मिरी... रातों को आँख उठा के ज़रा ... >> रही हमेशा तरक़्क़ी मिरी असीरी को गले पड़ी जो हुई पाँव से जुदा ज़ंजीर Share on: