रह-ओ-रस्म-ए-मोहब्बत इन हसीनों से मैं क्या रक्खूँ By Sher << 'नज़ीर' अब इस नदा... काम आख़िर जज़्बा-ए-बे-इख़... >> रह-ओ-रस्म-ए-मोहब्बत इन हसीनों से मैं क्या रक्खूँ जहाँ तक देखता हूँ नफ़अ उन का है ज़रर अपना Share on: