रस्म-ए-जहाँ न छूट सकी तर्क-ए-इश्क़ से By Sher << काबा हो कि बुत-ख़ाना हो ऐ... पहले बड़ी रग़बत थी तिरे न... >> रस्म-ए-जहाँ न छूट सकी तर्क-ए-इश्क़ से जब मिल गए तो पुर्सिश-ए-हालात हो गई Share on: