रोज़ ओ शब बेच दिए हैं मैं ने By Sher << ये रहबर आज भी कितने पुरान... वो क्या तलब थी तिरे जिस्म... >> रोज़ ओ शब बेच दिए हैं मैं ने इस बुलंदी से गिराता क्या है Share on: