रूह अरबाब-ए-मोहब्बत की लरज़ जाती है By Sher << कली चमन में खिली तो मुझे ... उम्र भर दुख सहते सहते आख़... >> रूह अरबाब-ए-मोहब्बत की लरज़ जाती है तू पशेमान न हो अपनी जफ़ा याद न कर Share on: