सभी मुसाफ़िर चलें अगर एक रुख़ तो क्या है मज़ा सफ़र का By Sher << जिस ने इंसाँ से मोहब्बत ह... छोटी पड़ती है अना की चादर >> सभी मुसाफ़िर चलें अगर एक रुख़ तो क्या है मज़ा सफ़र का तुम अपने इम्काँ तलाश कर लो मुझे परिंदे पुकारते हैं Share on: