सदियाँ जिन में ज़िंदा हों वो सच भी मरने लगते हैं By Sher << ये मेरा ख़ाक-दाँ रक्खा हु... वही फिर मुझे याद आने लगे ... >> सदियाँ जिन में ज़िंदा हों वो सच भी मरने लगते हैं धूप आँखों तक आ जाए तो ख़्वाब बिखरने लगते हैं Share on: