सदमे उठाएँ रश्क के कब तक जो हो सो हो By रक़ीब, Sher << पड़ गए ज़ुल्फ़ों के फंदे ... कह दो ये कोहकन से कि मरना... >> सदमे उठाएँ रश्क के कब तक जो हो सो हो या तो रक़ीब ही नहीं या आज हम नहीं Share on: