सफ़र का नश्शा चढ़ा है तो क्यूँ उतर जाए By Sher << ज़िंदगी जब्र है और जब्र क... कितनी दिलकश हो तुम कितना ... >> सफ़र का नश्शा चढ़ा है तो क्यूँ उतर जाए मज़ा तो जब है कोई लौट के न घर जाए Share on: