रोना मुझे ख़िज़ाँ का नहीं कुछ मगर 'शमीम' By Sher << शाम ढले ये सोच के बैठे हम... कल हम आईने में रुख़ की झु... >> रोना मुझे ख़िज़ाँ का नहीं कुछ मगर 'शमीम' इस का गिला है आई चमन में बहार क्यूँ Share on: